कितनी छोटी सी है ख्वाईशे
कितनी छोटी-छोटी है ख्वाहिशें
कितनी छोटी-छोटी है ख्वाहिशें!
उसकी... मेरी...
ना...ना करता फिर भी...
मेरे पैर छूना...
हक से मेरे जूते उतारते वक़्त...
उसकी आँखों में...
उतर आती चमक...
मेरी झूठी चाय की...
संतृप्त चुस्की लेकर...
उसका बरबस ही झूम उठना...
कितनी छोटी सी ख्वाहिशें...
जो मुझे जिंदा रखती है...
मेरे लिए...
तरह तरह की चीज़ें पकाकर
हक से खिलाना जैसे उसका अधिकार हो...
मेरे दुःखते पैरों पर
मरहम लगाकर मलती रहने में
सराबोर हो...
मेरे रोकने पर,
नकली गुस्सा दिखाकर
सिने से लग जाना...
कितनी छोटी सी है ख्वाहिशें...
मेरे हाथो से सिंदूर लगवाना...
और मंगलसूत्र गले मे
डालकर आँखें मुंद लेना...
उसकी सिसकती सांसो से एक ही
आवाज निकलना...
तुम बहुत सच्चे इन्सान हो....
तुम्हारा मोल तुम क्या जानो...
कितने करीब से उसने मुझे जाना....
बस छोटी है उसकी ख्वाहिशे....
कहती है....
साल में हर त्योहार
एक ही बार आता है....तुम्हारी तरह....
उस दिन हर कोई अपनी मनमानी करता
मुझे भी मनमानी करते प्लीज आप
न रोका करे....
कितनी छोटी सी है ख्वाहिशे....
जो जिंदगी अधूरी थी....
उन्हें पूरी होते देखकर
खुशी से आँखें बरसती है....
जो मेरा आईना है....
मेरे सोचने से पहले समझ जाती है
मैं क्या कहूंँगा...
अगर और जनम मिले तो...
साथ उसका हर बार हो...
कितना सच है कहती है वह...
मेरी तप्ती धरा पर....
गिरने वाली ओस की बूंदे हो तुम..
कितनी छोटी सी ही ख्वाहिशे...
पर मेरे लिए मेरी जिंदगी से....
बढकर हो तुम...
इन अनमोल लम्हें की तरह...
कितनी छोटी सी है ख्वाहिशे....
Mohammed urooj khan
06-Oct-2023 03:58 PM
शानदार 👌👌👌
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Sabirkhan Pathan
06-Oct-2023 09:56 PM
शुक्रिया
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Gunjan Kamal
06-Oct-2023 02:31 PM
👏👌
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Sabirkhan Pathan
06-Oct-2023 09:57 PM
शुक्रिया
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